धर्म के नाम पर हत्या: मंज़ुनाथ राव की दर्दनाक कहानी
"अगर वो हिंदू न होता, तो शायद आज ज़िंदा होता।"
कश्मीर से सामने आई एक भयावह घटना ने देश की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना सिर्फ एक इंसान की हत्या नहीं थी, बल्कि धर्म के आधार पर की गई एक क्रूर सज़ा थी — जिसमें सवाल नहीं, सिर्फ एक पहचान देखी गई: "क्या वो हिंदू है?
कोई राज्य नहीं पूछा, कोई भाषा नहीं, कोई जात नहीं।
आतंकियों ने मंज़ुनाथ राव से सिर्फ एक सवाल किया — "क्या तुम हिंदू हो?" और जैसे ही उत्तर मिला, बिना किसी और सोच-विचार के, उनकी छाती पर गोलियां दाग दी गईं।
22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसारन घाटी में आतंकवादियों ्वारा किए गए हमले में कम से कम 28 पर्यटकों की मौत हो गई और 20 से अधिक घायल हो गए |
घटना की बर्बरता यहीं नहीं थमी।
हमलावर वहां मौजूद अन्य पर्यटकों के पास भी पहुंचे। उनसे कहा गया — "अपनी पैंट उतारो।"
मकसद एक था: यह पता लगाना कि वे हिंदू हैं या मुसलमान। जैसे ही यह तय हो गया कि वे हिंदू हैं, फिर शुरू हुआ "गूली गूली" — अंधाधुंध गोलियों की बौछार।
मंज़ुनाथ राव कर्नाटक के रहने वाले थे।
वे अपनी पत्नी पल्लवी और बेटे के साथ कश्मीर घूमने आए थे। लेकिन यह यात्रा कभी न भूलने वाला दुःस्वप्न बन गई।
आतंकियों ने उनसे नाम पूछा, धर्म जाना — और फिर उनकी पत्नी और बेटे के सामने उन्हें गोलियों से भून दिया गया।
पल्लवी चीखती रही, रोती रही, चिल्लाती रही —"तुमने मेरे पति को मार डाला है, मुझे भी मार दो!"
लेकिन नहीं — उसे ज़िंदा छोड़ दिया गया। और कहा गया:
"जाओ, मोदी को बता देना।"
यह घटना हमारे समाज को आईना दिखाती है।
जब कोई किसी की जान सिर्फ इसलिए ले ले कि वो किस धर्म का है — तो यह सिर्फ एक हत्या नहीं, बल्कि पूरे मानवता पर धब्बा है।
क्या यह वही भारत है, जहां ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना पली-बढ़ी?
क्या अब पहचान के नाम पर मौतें तय होंगी?
इस घटना ने साफ कर दिया कि आतंकवाद का चेहरा सिर्फ हिंसा नहीं, बल्कि एक घिनौना भेदभाव भी है।
मंज़ुनाथ राव की हत्या हम सब से एक सवाल पूछती है — क्या हम चुप रहेंगे, या आवाज़ उठाएंगे?
BY : samachar4you.in


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